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एक डॉलर के लिए 67 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं. इसकी वजह जानते हैं? जानें रुपये की कहानी बड़ी तादाद में नोट छापे जाने के बावजूद ऐसा क्या है !

नई दिल्लीः आज रिजर्व बैंक के नए गवर्नर उर्जित पटेल ने कामकाज संभाल लिया. अब देश में छपने वाले नये नोटों पर उर्जित पटेल के ही दस्तखत होंगे. रिज़र्व बैंक अब तक 22 गवर्नरों के दस्तखत वाले नोट जारी कर चुका है. 1540 से 1545 के बीच शेरशाह सूरी से ने रुपया शब्द दिया और अब भारत समेत आठ देशों की मुद्रा को रुपया के नाम ही से जाना जाता है पहले रुपया केवल धातु से बने सिक्कों को ही कहा जाता था लेकिन 1861 में पेपर करेंसी एक्ट के साथ ही अठारहवी सदी के अंतिम सालों में कागजी नोट का जन्म हुआ.
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रिजर्व बैंक के अधिकार
1934 तक रुपये को नोट के रुप में जारी करने की जिम्मेदारी सरकार की थी, जबकि 1935 से लेकर अब तक ये काम रिजर्व बैंक के पास है. हालांकि एक रुपये के नोट को जारी करने की जिम्मेदारी अब भी सरकार के पास है जबकि 2 से लेकर 1000 रुपये के नोटों को जारी करने की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की है. हालांकि अब दो रुपये और पांच रुपये के नोट छपते नहीं हैं. चूंकि एक को छोड़ बाकी मूल्य के नोटों को रिजर्व बैंक जारी करता है, इसीलिए उनपर रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं. 1 रुपये के नोट पर भारत सरकार के वित्त सचिव दस्तख्त करते हैं.
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कागजी नोट के रुप में रुपया मध्य प्रदेश के देवास, महाराष्ट्र के नासिक, कर्नाटक के मैसूर औऱ पश्चिम बंगाल के सल्बोनी स्थित प्रिटिंग प्रेस में छपता है जबकि सिक्कों के रूप में मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और नोएडा स्थित टकसाल में ढाला जाता है.
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आपको बता दें कि अब रुपया ही नहीं, किसी भी देश की मुद्रा के पीछे सोना या चांदी जैसा कोई बहुमूल्य धातु नही रखा जाता. 1971 में ब्रिटेन वुड व्यवस्था खत्म होने के साथ ही गोल्ड स्टैंडर्ड का भी अंत हो गया. अब विभिन्न देशों की मुद्रा की तरह रुपये को फिएट करेंसी कहा जाता है. फिएट करेंसी कानूनी तौर पर मान्यता प्राप्त मुद्रा होती है जिसे सरकार का सहारा होता है. फिएट लैटिन भाषा से लिया गया शब्द है. हिंदी में इसका मतलबा आज्ञा या हुकुम होता है.
1935 से लेकर अब तक रिजर्व बैंक के 23 में से 22 गवर्नर के हस्ताक्षर वाले नोट जारी किए गए हैं. जारी करने वाली संस्था के मुखिया के तौर पर गवर्नर (के हस्ताक्षर) नोट रखने वाले को अंकित रकम के बराबर मूल्य अदा करने का वचन देता है. एक बात यहां बता दे कि ये वचन किसी करार के तहत नही बल्कि कानूनी प्रावधानों के तहत दिया जाता है. अब 4 सितम्बर के बाद अपने हस्ताक्षर के जरिए उर्जित पटेल ये वचन देंगे.
अब सवाल ये है कि कितना नोट छापा जाए या कितने सिक्के ढ़ाले जाएं? जहां तक बात नोटों की है, 1 रुपये को छोड़ बाकी कीमत वाले नोटों के बारे में रिजर्व बैंक आर्थिक विकास दर, महंगाई दर और नोटों की बदलने की मांग जैसे तथ्यों के आधार पर अनुमान लगता है, फिर सरकार के साथ विचार-विमर्श कर तय होता है कि कितना नोट छपेगा. रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, 2008 से 2013 के बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे डुबरी सुब्बाराव के हस्ताक्षर वाले 3600 करोड़ से भी ज्यादा नोट 2011-12 और 2012-13 के दौरान छपे.
इन नोट की कुल कीमत सात लाख 20 हजार करोड़ रुपये के करीब थी. वहीं सितम्बर 2013 से सितम्बर 2016 के बीच गवर्नर रहे रघुराम राजन के हस्ताक्षर वाले करीब साढ़े चार हजार नोट 2014-15 और 2015-16 के दौरान छपे. जिनकी कुल कीमत आठ लाख 13 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा थी.
इतनी बड़ी तादाद में नोट छापे जाने के बावजूद एक डॉलर के लिए 67 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं. इसकी वजह जानते हैं.
बाजार का नियम है कि जिस चीज की मांग जितनी ज्यादा होगी, उसकी कीमत उतनी ही ज्यादा होगी. आज की तारीख में दुनिया भर के बाजार में किसी मुद्रा की अगर सबसे ज्यादा मांग है तो वो है डॉलर. नतीजा ज्यादातर देशो की मुद्रा के मुकाबले डॉलर महंगा है. ये भी मत भूलिए कि जिस देश की अर्थव्यवस्था जितनी बड़ी होगी, उसका उतना ही अच्छा असर उसकी मुद्रा पर पड़ेगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था 18.55 खरब डॉलर के साथ पहले स्थान पर है जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार सवा दो खरब डॉलर से कुछ ज्यादा ही है.
भले ही नोट छापने और सिक्का ढालने का फैसला सरकार और रिजर्व बैंक मिलकर करते हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि गरीबी दूर करने के लिए खूब सारे नोट छाप लिए जाएं. बाजार में अगर नोट औऱ सिक्के काफी ज्यादा हो जाएंगे, तो महंगाई आसमान छूने लगेगी.

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