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लालू-राबड़ी की उम्मीदों को तेजस्वी ने फिर दिया चकमा, राजद के अंदर भयानक हलचल

नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने राजद नेताओं की उम्मीदों को फिर चकमा दिया। राजद के सदस्यता अभियान को लेकर बुलाई गई बैठक की अध्यक्षता के लिए शीर्ष नेताओं की तेजस्वी से बात हुई। सहमति भी मिल गई। आने का समय भी बताया। उत्साही कार्यकर्ता और नेता बाजेगाजे के साथ अगवानी के लिए हवाई अड्डे तक पहुंच भी गए। किंतु आखिरकार निराशा हाथ लगी। रविवार को तेजस्‍वी पटना आएंगे या नहीं, इसे भी कोई बताने वाला नहीं है। लेकिन यह भी हकीकत है कि इसे लेकर पार्टी के अंदर भयानक हलचल मचा हुआ है।

पहली बार ऐसा नहीं हुआ है

पिछले तीन महीने के दौरान राजद नेताओं के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। प्रतीक्षा और निराशा की सूची लंबी हो गई है। ऐसे में अब राजद के कार्यक्रमों और अभियानों में तेजस्वी यादव का नहीं आना खबर नहीं है, बल्कि सवाल यह है कि लालू प्रसाद की सियासी विरासत का क्या होगा? कौन संभालेगा? जवाब भी हाजिर है कि कोई न कोई तो परिवार से ही सामने आएगा।

कौन संभालेगा लालू की विरासत

कौन? लालू जेल में हैं। तेजस्वी ने संन्यास का रास्ता पकड़ लिया है। तेजप्रताप यादव की एकाग्रता और नेतृत्व क्षमता पर संशय है। मीसा भारती की गतिविधियों से लगता है कि उन्हें ज्यादा मतलब नहीं है। जाहिर है, एक नाम बचता है राबड़ी देवी का, जिन्होंने लालू के मुश्किल वक्त में 1997 में पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ बिहार की सत्ता भी संभाली थी और जिनकी पार्टी और परिवार पर आज भी समान पकड़ है।

कहते हैं शिवानंद

राबड़ी के आगे आकर नेतृत्व करने के सवाल पर राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी कहते हैं कि यह कोई नई बात नहीं है। तेजस्वी जब बच्चे थे, तब भी राबड़ी देवी के पास कमान थी, आज भी है और आगे भी रहेगी। बकौल शिवानंद, राजद और लालू-राबड़ी एक-दूसरे के पर्याय हैं। तेजस्वी के एक-दो बैठकों में नहीं आने भर से कोई अगर सोचता है कि राजद खत्म होने वाला है तो गलत है।

… लेकिन पार्टी के अंदर भयानक हलचल है

बहरहाल, शिवानंद की बातों से इतर तेजस्वी के हालिया रवैये से पार्टी में निराशा के भाव को खारिज नहीं किया जा सकता है। ऊपर से सबकुछ ठीक रहने का दावा है, किंतु अंदर भयानक हलचल है। विधायकों की बैठक में कांति सिंह ने बिना झिझक इजहार भी कर दिया कि पुराने चेहरों को दरकिनार किया जा रहा है। चापलूसों की पूछ हो रही है। कांति की पीड़ा को लोकसभा चुनाव में बेटिकट होने से जोड़कर खारिज नहीं किया जा सकता। बल्कि पार्टी में कांति की तरह कई ऐसे नेता हैं जो खुलकर बोल तो नहीं रहे हैं, किंतु पर्दे में रहकर सबकुछ आईने की तरह साफ कर देते हैं। टिकट वितरण में मनमानी से लेकर कार्यकर्ताओं-नेताओं से तेजस्वी की बढ़ती दूरी तक। लालू परिवार से ज्यादा उनकी नाराजगी तेजस्वी की नई मित्र मंडली से है।

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