लखनऊ। पूरे विश्व में प्रत्येक 12 में 1 व्यक्ति या तो हेपेटाइटिस-बी या सी के साथ जी रहा है। हालांकि यह संख्या एच.आई.वी या किसी भी प्रकार के भी कैंसर की तुलना में अत्यधिक है फिर भी हेपेटाइटिस से सम्बंधित जागरुकता बहुत कम है।
या फिर यह कहा जा सकता है कि जिन्हें यह बीमारी है वह इससे पूर्ण रूप से अनभिज्ञ हैं। यह बातें डॉ. मनीष टंडन और डॉ. अजय कुमार चौधरी ने बताई। उन्होंने बताया कि हेपेटाइटिस का अर्थ लीवर की सूजन से है। हेपेटाइटिस के अलग-अलग वायरस की वजह से होता है।
वायरल हेपेटाइटिस भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है। वायरल हेपेटाइटिस वायरस एबीसी की वजह से होता है। उन्होंने बताया कि विश्व में लगभग 24 करोड़ लोग हैं जो हैपेटाइटिस-बी से संक्रमित है, जिसमें से 75 प्रतिशत एशिया महाद्वीप से है।
विश्व में लगभग 15 करोड़ लोग हेपेटाइटिस-सी से संक्रमित है। हर साल लगभग 1 मिलियन लोगों की लीवर सिरोसिस या लीवर कैंसर से मृत्यु हो जाती है। हाल ही कि एक रिपोर्ट के अनुसार हेपेटाइटिस-बी वायरस संक्रमण कई वजहों से होता है जिसमें संक्रमित ज्वाइंडिस (पीलिया) संक्रमित सुई व रक्त का प्रयोग, असुरक्षित यौन सम्बंध और संक्रमित मां से उसके शिशु को प्रमुख है।यह वायरस हेपेटाइटिस के 30 प्रतिशत मरीजों में लीवर सिरोसिस और 53 प्रतिशत लोगों में लीवर कैंसर के लिए जिम्मेदार है। लगभग 15-40 प्रतिशत हेपेटाइटिस-बी से प्रभावित व्यक्ति बिना किसी उपचार के मृत्यु के शिकार हो जाते है।
उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में लगभग 4 करोड़ लोग हेपेटाइटिस-बी वायरस से संक्रमित है। एक अनुमान के अनुसार भारत में जन्म लेने वाले 25 मिलियन नवजात शिशुओं में से लगभग 1 मिलियन शिशुओं को जीवन पर्यन्त हेपेटाइटिस-बी वायरस से संक्रमित होने का खतरा बना रहता है।
उन्होंने बताया कि हेपेटाइटिस-बी व सी से प्रभावित लोगों के इलाज के लिए टेनोफोविट और एंटिकाविर नाम की दवा उपलब्ध है। इसके अलावा सी के लिए सोफोसबुविर, लैडीपासविर, डैक्र्लाटासविर नाम की दवाएं भी भारत में उपलब्ध है।