नागरिकता संशोधन कानून को लेकर नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान मरने वालों के परिजनों को अब भी अपनों के शवों का इंतजार है। अपनों के शव लेने के लिए परिजन अस्पताल में इधर-उधर भटक रहे हैं। दिल्ली की जीटीबी अस्पताल में 5 दिनों में 18 शवों का ही पोस्टमार्टम हो पाया है। इसके अलावा, कई लोग ऐसे भी हैं जो अपनों की तलाश में अस्पताल पहुंचे हैं, मगर उन्हें अस्पताल से निराशा ही हाथ लगी है। तो चलिए पढ़ते हैं हेमवती नंदर राजौरा की रिपोर्ट….
अभी पांच दिन और लग सकते हैं: जीटीबी अस्पताल की मोर्चरी के बाहर शुक्रवार को भी परिजन अपनों के शव लेने के लिए भटकते रहे। डॉक्टरों का कहना है कि सभी शवों के पोस्टमार्टम में पांच दिन का समय और लग सकता है। अभी 20 शव का पोस्टमार्टम होना बाकी है। शुक्रवार को भी सिर्फ नौ शवों का ही पोस्टमार्टम हो सका।
जांच अधिकारी उपलब्ध न होने की वजह से देरी: अस्पताल सूत्रों के मुताबिक, पोस्टमार्टम में देरी की वजह पुलिस की ओर से रिपोर्ट न देना बताया जा रहा है। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर सुनील कुमार गौतम ने बताया कि पुलिस की ओर से जितने आवेदन मिल रहे हैं, हम उतने ही पोस्टमार्टम कर रहे हैं। शुक्रवार को पुलिस की ओर से 10 पोस्टमार्टम करने की रिपोर्ट हमें दी गई। हालांकि, नौ पोस्टमार्टम ही हो पाए, क्योंकि जांच अधिकारी के नहीं पहुंचने की वजह से एक शव का पोस्टमार्टम नहीं हो पाया।
शव सड़ने की आशंका: पीड़ित परिजनों का आरोप है कि देरी से पोस्टमार्टम होने से शव सड़ने लगे हैं। बुलंदशहर से अपने भतीजे अशफाक हुसैन का शव लेने आए उसके चाचा ने बताया कि वे आज मोर्चरी के अंदर गए थे, जहां उन्होंने भतीजे के शरीर की पहचान की। उन्होंने आरोप लगाया कि पोस्टमार्टम में देरी की वजह से शव सड़ने लगे हैं। उन्होंने शव रेफ्रिजरेटर में न रखने के भी आरोप लगाए। वहीं, दंगे में जान गंवाने वाले दिलशाद के परिजन फराज ने आरोप लगाया कि वे शव की पहचान के लिए अंदर गए थे तो उन्होंने देखा कि मोर्चरी में अधजले शव अभी भी स्ट्रेचर पर पड़े थे।
दंगों के दौरान अफवाहों के विपरीत मात्र 16 लोगों की गुमशुदगी की सूचना अभी तक पुलिस के पास आई है। ऐसे मामले अलग-अलग थानों में दर्ज हुए हैं। इस वजह से परेशान परिजन थानों और अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं। दिल्ली पुलिस के अनुसार गायब होने वालों में नाबालिग और महिला-पुरुष सभी हैं।
शव की पहचान के लिए डीएनए होगा
यूपी के हापुड़ के रहने वाले वाले अनवर शिव विहार में अकेले रहते थे। दंगे में वे बुरी तरह जल गए। उनके शव की शिनाख्त के लिए डीएनए जांच करनी होगी। अनवर की बेटी गुलशन अपने पिता का शव लेने जीटीबी अस्पताल आई थी। उन्होंने बताया कि पापा के भरोसे ही हमारी जिंदगी चल रही थी। इस हिंसा ने मेरे पापा को छीन लिया।