राजनीति में खून का रंग सफ़ेद !
कहते हैं रिश्ते अपनों को बांध कर रखते है क्यों की “ खून का रंग लाल होता है “ एक ही खून से पूरा परिवार सृजित हुआ है, यह एक सच्चाई है पर अपवाद ज्यादा है आज के युग में परिवार के सदस्य अपनों को न तो गंभीरता से लेते है न ही अपनापन पिरोने में कोई दिलचस्पी लेते है , चाचा भतीजे को इसलिए नहीं भाता क्यूंकि चाचा भतीजे के किए धरे पर पानी फेर रहा , कहते है भतीजा विकास की बात करता है तो चाचा बाहुबल से दुनिया को मुट्ठी में करना चाहता है , भतीजा return Gift की बात करता है तो चाचा सत्ता बहुबल से हासिल करना चाहता है , भतीजा प्रदेश में बदलाव की बात करता है तो उसी खून का दूसरा कतरा उलटी गंगा बहाने की बात करता है , ये एक ही खून के दो रंग है एक सफ़ेद है तो दूसरा लाल वो भी सुर्ख लाल है, यही राजनीति है जो न तो खून के रिश्तों को छोडती है न ही करीबियों को.