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राजीव गांधी के हत्यारों ने क्यों छुए थे वीपी सिंह के पैर !

20 अगस्त को राजीव गांधी 72 साल के हो जाते. नहीं हो पाए. क्योंकि 21 मई 1991 को लिट्टे की मानव बम ने उन्हें मार दिया. तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में. रात 10.15 पर. राजीव वहां लोकसभा चुनाव के चलते हुई एक रैली में बोलने गए थे. मंच तक नहीं पहुंच पाए. नीचे लोग खड़े थे. हाथों में माला लिए. उन लोगों में एक लड़की भी थी. सलवार सूट पहने. चश्मा लगाए. उसका नाम धनु था. वो अपने देश की नहीं थी. पड़ोसी श्रीलंका की थी. वहां तमिलों के लिए हथियार बंद लड़ाई कर रहे संगठन लिट्टे से जुड़ी थी.

rajiv gandhi_live

लिट्टे की काली बाघिन विंग की मेंबर थी. ये विंग स्यूसाइड हमलों के लिए बनी थी. ये पहला मौका था, जब एक इंसान बम ब्लास्ट के लिए इस तरह से इस्तेमाल किया गया हो. फिर तो तालिबान से लेकर आईएसआईएस तक सब ये काम करने लगे.

राजीव गांधी आखिरी वक्त क्या सोच रहे थे. क्या बोल रहे थे. ये वही बता सकता है, जो उस वक्त उनके साथ था. उनके साथ एक पत्रकार थीं. राजीव की एंबैसडर कार में. एयरपोर्ट से रैली ग्राउंड तक. उनका नाम है नीना गोपाल. वह उस वक्त गल्फ न्यूज के लिए काम करती थीं. इंटरव्यू के वास्ते मिली थीं. कार ड्राइव के दौरान पॉलिटिक्स पर बातें होती रहीं. रैली ग्राउंड पर पहुंचे तो नीना बोलीं. एक सवाल तो रह ही गया. राजीव मुस्कुराए और बोले, अभी लौटकर आता हूं.

नहीं आ पाए. सब जानते हैं. मगर कुछ बातें हैं, जो दुनिया के सामने अब आ रही हैं. पहली मर्तबा. क्योंकि नीना गोपाल ने एक किताब लिखी है. इसका टाइटिल है the assasination of rajiv gandhi. इस किताब को पेंग्विन इंडिया ने छापा है.

किताब में राजीव गांधी की हत्या के पीछे के षड़यंत्र की सब बारीकियों की पड़ताल की गई है. किताब राजीव की मौत से शुरू होती

rajiv gandhi

है. फिर पीछे लौटती है. इस हमले की तैयारी कैसे हुई. लिट्टे चीफ प्रभाकरन राजीव से नाराज क्यों था. और आखिर में हमले के बाद कैसे जांच हुई. लिट्टे का खात्मा जहां हुआ, किताब वहां खत्म होती है. ये बहुत रोचक है. तथ्यों से भरी है. इस सब्जेक्ट पर काफी कुछ लिखा जा चुका है. नीना ने उन सबका भी बढ़िया यूज किया है. हम यहां आपको किताब के तीन किस्से बता रहे हैं.

राजीव का प्रभाकरन को पर्सनल गिफ्ट

भारत के प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी उस वक्त. नई दिल्ली के 10 जनपथ में रहते थे. यहां साल 1987 महीना जुलाई के आखिरी दिनों में उनसे मिलने के लिए एक गुरिल्ला कमांडर को लाया गया. वी प्रभाकरन. लिट्टे नाम का उग्रवादी तमिल संगठन चलाता था. चेन्नई में रहकर श्रीलंका में हरकतें करता था. राजीव गांधी उस वक्त तक श्रीलंका के राष्ट्रपति जे जयवर्धने को जबान दे चुके थे. समझौते की तैयारी चल रही थी. श्रीलंका एक रहेगा और अपनी एकता के लिए तमिल हितों की अनदेखी नहीं करेगा. इस तरह की बात हो गई थी. सुलह सफाई और हथियार जमा करने के लिए भारतीय सेना को जाना था. मगर उसके पहले राजीव को समझौते की सबसे बड़ी अड़चन से वादा चाहिए था.

प्रभाकरन उस वक्त दिल्ली के अशोका होटल में था. खुफिया निगरानी में. उसे राजीव के पास लाया गया. उसने मन मारकर हां बोल दी. उस वक्त संगीनों के बीच उसके पास कोई ऑप्शन भी नहीं था. राजीव को लगा, प्रभाकरन पर भरोसा किया जा सकता है. आखिर इंडिया की मदद से ही तो उसका कद इतना बड़ा हुआ था. उन्होंने अंदर से एक गिफ्ट मंगवाया. ये राजीव की पर्सनल बुलेट प्रूफ जैकेट थी. कमरे में उस दौरान राजीव का 17 साल का लड़का राहुल भी मौजूद था. उसने ये जैकेट प्रभाकरन के कंधों पर ओढ़ाते हुए रखी. राजीव मुस्कुराए और बोले. अपना ख्याल रखना. ये दोनों के बीच आमने सामने की आखिरी मुलाकात थी. मैंने जब से किताब पढ़ी है. बार-बार सोचता हूं. राहुल को ये दोपहर याद आती होगी. प्रभाकरन की शक्ल. उनके पापा का यकीन.

हत्यारों ने वीपी सिंह के पैर क्यों छुए

राजीव गांधी की हत्या के लिए चेन्नई में डेरा जमाए लिट्टे दस्ते ने 12 मई को हमले की फुल ड्रेस रिहर्सल की थी. इसके लिए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल नेता वीपी सिंह की रैली को चुना. सिंह ये रैली करुणानिधि के सपोर्ट में करने आ रहे थे. जगह थी मद्रास से 40 किलोमीटर दूर थिरूवलूर. मानव बम धनु समेत पूरा लिट्टे गैंग इस रैली में गया. उन्होंने स्टेज के पास डी एरिया की सिक्युरिटी का जायजा लिया. इतना ही नहीं, जब वीपी सिंह रैली के लिए पहुंचे, तो धनु ने आगे बढ़कर उनके पैर भी छुए. वैसे ही, जैसे 9 दिन बाद राजीव के छुए थे. फर्क बस कुर्ते के नीचे, डेनिम की सदरी में छिपे बम का था.

मोतीबाग की सोनिया हो सकती थी राजीव की कातिल

राजीव गांधी की हत्या की साजिश प्रभाकरन के निर्देश पर पोट्टू अम्मन ने बनाई थी. लिट्टे का नंबर टू. इंटेलिजेंस विंग का मुखिया. उसने पूरे प्लान का नाम रखा. ऑपरेशन वेडिंग. इसके लिए तीन लड़कियों को श्रीलंका से भारत भेजा गया. पहली दो थीं धनु और शुभा. धनु ने राजीव गांधी के पैर छुए. बटन दबाया और सब खत्म हो गया. बैकअप के लिए शुभा को तैनात किया गया था. वो कुछ महीनों बाद बेंगलुरु के पास की एक बस्ती में पाई गई. मुर्दा. साथियों के साथ. पुलिस के भीतर आने से पहले उसने सायनाइड चाट लिया था. मगर एक लड़की और थी. सोनिया नाम की. जो दिल्ली के मोतीबाग इलाके में रहकर इंतजार कर रही थी. कहा जाता है कि ये मकान तमिलनाडु के नेता और प्रभाकरन के दोस्त वाइको ने दिलाया था. वाइको बाद में सांसद भी बने. मगर उनके रोल की ढंग से जांच नहीं हुई.

खैर, सोनिया लड़की का एक नाम था. कई नामों में से एक. उसका असल नाम था अथीराई. वो चंद्रलेखा भी लिखती थी. और खुद को गोवरी और सोनिया नामों से भी इंट्रोड्यूस करती थी. क्या अथीराई को पता होगा. जिस आदमी को वो मारना चाहती हैं, वो जिस औरत से सबसे ज्यादा प्यार करता है. उसका नाम भी सोनिया है. उसकी बीवी, सोनिया माइनो.

अथीराई पोट्टू अम्मन का डबल बैक थी. अगर तमिलनाडु में राजीव गांधी पर हमला नाकाम रहता, तो दिल्ली में यही काम सोनिया करती. मगर काम तो पहली बार में ही हो गया. उसके बाद अथीराई ने अपने एक बुजुर्ग साथी के साथ दिल्ली से भागने की कोशिश की. पुलिस ने उसे रेड में स्टेशन के पास के होटल से अरेस्ट किया. शुरुआत में वर्दी वालों को लगा कि उनके हाथ शुभा लग गई है. बाद में बात साफ हुई.

दरोगा अनसुइया का अफसोस

अनसुइया तमिलनाडु पुलिस में सब इंस्पेक्टर थी. 21 मई को उसकी रैली ग्राउंड पर ड्यूटी लगी थी. स्टेज के सामने एक डी शेप का घेरा बना था. यहां चुनिंदा वीआईपी को आने की इजाजत थी. मानव बम धनु भी यहां तक पहुंच गई थी. उसके हाथ में चंदन की माला थी. बगल में इस हमले का मास्टर माइंड भी था. शिवरासन. हाथ में पैड लिए. पत्रकार होने का ढोंग करता. अनसुइया राउंड लगा रही थी. उसे ये लोग कुछ अजीब लगे. पांच का एक ग्रुप. इसमें दो और लड़कियां थीं. धनु और नलिनी. एक आदमी मुरुगन भी. उसने सबको पीछे धकेला.

राजीव पहुंचे तो भीड़ फिर आगे बढ़ने लगी. अनसुइया इसे संभालने की कोशिश कर रही थीं. ताकि पूर्व पीएम स्टेज तक पहुंच जाएं. स्टेज पर उनकी जिंदाबाद के नारे लग रहे थे. तभी वो बड़े चश्मे वाली लड़की फिर आगे बढ़ने लगी. अनसुइया ने बांह पकड़कर उसको रोक लिया. और पीछे जाने को बोला. वो पलटने ही वाली थी कि राजीव की आवाज सुनाई दी. प्लीज सबको आने दीजिए. अनसुइया की पकड़ कमजोर हो गई. वो लड़की आई. और आई मौत.

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