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सच होती दिख रही है मनमोहन सिंह की नोट्बंदी पर भविष्यवाणी, जानिए- हमने क्या खोया और क्या पाया !

भारत की कुल आधिकारिक जीडीपी (काला धन और सफेद धन मिलाकर) 225 लाख करोड़ रुपये की है। एक अनुमान के मुताबिक इनमें से काला धन 75 लाख करोड़ रुपये और सफेद धन 150 लाख करोड़ रुपये है। हालांकि, देश में कुल कितना कालाधन है, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है लेकिन एक आंकलन में कहा गया कि देश में मौजूद काला धन का 8 फीसदी हिस्सा नकदी रुप में है। यानी 75 लाख करोड़ का 8 फीसदी हिस्सा करीब 6 लाख करोड़ रुपये नकदी रूप में है।
आर्थिक मामलों के जानकारों में भी काला धन की रकम पर मतभेद है। प्रो. अरुण कुमार इसे 6.5 लाख करोड़ रुपये मानते हैं। एक सरकारी वकील ने भी सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ऐसी उम्मीद है कि 5 लाख करोड़ रुपये नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था में वापस नहीं आ सकेंगे। इसलिए कई आर्थिक जानकार करीब-करीब 6 लाख करोड़ रुपया काला धन का अनुमान लगा रहे हैं।
31 मार्च 2016 के आंकड़े के मुताबिक 500 और 1000 रुपये के नोटों की कुल कीमत 14.5 लाख करोड़ रुपये थी। सरकार ने इन नोटों को 8 नवंबर 2016 को प्रचलन से बाहर कर दिया। यानी उनकी नोटबंदी कर दी। लिहाजा, आर्थिक विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक 14.5 लाख करोड़ रुपये में से 6 लाख करोड़ रुपये जो काला धन है उसे हटा दिया जाय तो शेष कुल 8.5 लाख करोड़ रुपये सफेद धन है। सरकार को उम्मीद थी कि 500 और 1000 रुपये के रूप में जो कालाधन मौजूद है वह दोबारा बैंकों में जमा नहीं होंगे।
अगर बैंकों में सिर्फ 8.5 लाख करोड़ रुपये ही जमा होते हैं तो सरकार यह दावा कर सकती थी कि काला धन (6 लाख करोड़ रुपया) अर्थव्यवस्था से बाहर हो गया लेकिन अगर कुल 14. 5 लाख करोड़ रुपये बैंकों में वापस जमा हो जाते हैं तो कहा जा सकता है कि सरकार इस मुद्दे पर फेल रही है। हालांकि, सरकारी वकील शुरू से ही सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क देते रहे हैं कि 5 लाख करोड़ रुपये वापस नहीं आ पाएंगे। हालांकि अभी तक करीब 11 लाख करोड़ रुपये वापस बैंकों में जमा हो चुके हैं। आर्थिक जानकार मानते हैं कि अगर सरकारी दावे को मान भी लेते हैं तो इस नोटबंदी से सिर्फ 6 लाख करोड़ रुपये सरकारी खजाने में आएंगे।
नोटबंदी के एक महीने बाद जब नफा-नुकसान की बात हो रही है। ऐसे में सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) के मुताबिक 30 दिसंबर 2016 तक नोटबंदी अभियान के तहत होनेवाला कुल खर्च 1.28 लाख करोड़ रुपया है जो जीडीपी का 0.9 फीसदी होता है। इस रकम का बोझ देश के हरेक पुरुष, महिला और बच्चे पर करीब 1000 रुपये आता है। हालांकि सीएमआईई ने इसे फिलहाल कंजरवेटिव एस्टीमेट ही बताया है। वित्त वर्ष खए अंत तक ही इसका सही आंकलन किया जा सकेगा। सीएमआईई के मुताबिक साल 2016-17 और 2017-18 की जीडीपी में ह्रास हो सकता है। हालांकि जीडीपी में कितनी गिरावट आएगी, इस पर भी अलग-अलग दरों (0.5 फीसदी से लेकर 3 फीसदी तक) का अनुमान है।
7 दिसंबर, 2016 को भी रिजर्व बैंक ने कहा कि साल 2016-17 के दौरान जीडीपी में 0.5 फीसदी की गिरावट हो सकती है। चूंकि मौजूदा वित्त वर्ष में तीन महीने शेष हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि अगले वित्त वर्ष में यह गिरावट करीब 2 फीसदी हो सकती है। जैसा कि संसद में (राज्यसभा में) पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह चुके हैं। अगर सचमुच ऐसा होता है तो अगले वित्त वर्ष की जीडीपी में 2 फीसदी गिरावट का मतलब 3 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। यानी अगले साल तक नोटबंदी से देश को कुल 4.3 लाख करोड़ (1.3 लाख करोड़ और 3 लाख करोड़) रुपये हो सकता है।
7 दिसंबर, 2016 को रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के बयान के मुताबिक, बैंकों में अब तक 11.5 लाख करोड़ रुपये वापस आ चुके हैं। सिर्फ 3 लाख करोड़ रुपये बचे हैं और अभी 22 दिन बाकी हैं। ऐसे में अभी और पैसे बैंकों में वापस आने बाकी हैं। अगर सभी पैसे बैंकों में वापस जमा हो जाते हैं जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस से केन्द्रीय राजस्व सचिव हंसमुख अधिया कह चुके हैं, तब देशवासियों को अनायास ही मोदी सरकार के इस नोटबंदी के फैसले से 4.3 लाख करोड़ रुपये का बोझ सहना होगा और यह बोझ आम जनता को टैक्स के रूप में चुकाना होगा।

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