एजेंसी/ ध्यानलिंग का अनोखापन यह है कि इसमें सभी सात चक्र प्रतिष्ठित हैं। लिंगदण्ड में, जो एक ताँबे की नली है, ठोस किया हुआ पारा भरा है। उसमें सभी सातों चक्र पूरी तीव्रता में प्रतिष्ठित हैं और इन्हें ध्यानलिंग की बाहरी परिधि पर मौजूद स्थित ताँबे की सात रिंग की मदद से और दृढ़ किया गया है। क्या आप जानते हैं कि ये चक्र क्या हैं? आपके भौतिक शरीर में विभिन्न केन्द्र हैं, जीवन के सात आयामों या जीवन के अनुभव के सात आयामों को दर्शाने वाले सात मौलिक केन्द्र हैं। ये सात चक्र हैंः ’मूलाधार’ जो जननेन्द्रियों और गुदा-द्वार के बीच स्थित है। ’स्वाधिष्ठान’ जो जननेन्द्रियों के ठीक ऊपर स्थित है; ’मणिपूरक’ जो नाभि के ठीक नीचे स्थित है; पसलियों के मिलने की जगह के ठीक नीचे का कोमल स्थान ’अनाहत’ है; गले के नीचे के गड्ढे में ’विशुद्धि’ स्थित है; दोनों भौंहों के बीच ’आज्ञा’ है और सिर के ऊपर ’सहस्त्रार’ स्थित है।
खेल सात चक्रों का
ये सात चक्र क्या दर्शाते हैं? अगर आपकी ऊर्जा मूलाधार में प्रबल है, तो खाना और सोना आपके जीवन में सबसे प्रबल प्रवृत्तियाँ होंगी। अगर यह स्वाधिष्ठान में प्रबल है, तो आपके जीवन में भोग-विलास सबसे ज़्यादा अहम होगा। आप सुख की तलाश करेंगे और भौतिकता का आनंद लेंगे। अगर ऊर्जा मणिपूरक में प्रबल है, तो आप गतिविधियों में ज़्यादा सक्रिय होंगे आप दुनिया में तमामों काम करेंगे। अगर यह अनाहत में सक्रिय है, तो आप काफी सृजनशील इंसान होंगे। अगर आपकी ऊर्जा विशुद्धि में प्रबल है, तो आप एक बहुत शक्तिशाली इंसान बन जाएंगे। अगर आपकी ऊर्जा आज्ञा में प्रबल है, तो आप शांतिमय हो जाएंगे। अगर आप आज्ञा पर पहुँच जाते हैं, तब आप बौद्धिक स्तर पर प्रबुद्ध हो जाते हैं, लेकिन आप अनुभव के स्तर पर प्रबुद्ध नहीं बनते। बाहर चाहे जो कुछ भी घटित हो रहा हो, उसके बावजूद आपके अंदर एक तरह की शांति और स्थिरता बनी रहती है। अगर आपकी ऊर्जा सहस्त्रार में प्रवेश कर जाती है, तब आपके अंदर परमानंद का विस्फोट होता है, जिसे समझाया नहीं जा सकता। आपको अपने भीतर जो भी अनुभव होता है, वह बस आपकी जीवन-ऊर्जा की अभिव्यक्ति मात्र है। गुस्सा, दुख, शांति, खुशी, परमानंद… यह सब एक ही ऊर्जा की अभिव्यक्ति के अलग-अलग स्तर हैं। यही वो सात आयाम हैं, जिनके माध्यम से कोई इंसान ख़ुद को व्यक्त कर सकता है।
अपने पिछले जन्म में, सद्गुरु श्री ब्रह्मा के रूप में, मुझे चक्रेश्वर के नाम से जाना जाता था। आप लोगों में से जो तमिलनाडु से हैं, हो सकता है कि आपने इस बारे में सुना हो। चक्रेश्वर का मतलब हैः वह इंसान जिसे सभी एक सौ चैदह चक्रों के ऊपर पूरी महारत हासिल हो। यह उसी महारत का नतीजा है कि अब हम ऐसे लोग तैयार कर सकते हैं जो विस्फोट की तरह हर जगह उड़े जा रहे हैं। उन्हें चक्रेश्वर के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उनमें चक्रों के ऊपर अपनी पूर्ण दक्षता होने के खास गुण मौजूद थे। उन्होंने एक बड़ी अद्भुत दुर्लभ चीज़ करी – जब उन्होंने अपना शरीर छोड़ा, उन्होंने सभी सात चक्रों से छोड़ा। आमतौर पर जब योगी अपना शरीर छोड़ते हैं, तो वे किसी एक खास चक्र से छोड़ते हैं, जिस चक्र के ऊपर उन्हें महारत हासिल होती है, उसी चक्र से वह शरीर छोड़ते हैं। वरना, वे अपनी प्रवृत्तियों के अनुसार शरीर छोड़ते हैं, लेकिन सद्गुरु ने अपना शरीर सभी सात चक्रों से छोड़ा। ध्यानलिंग प्रतिष्ठा की तैयारी के तौर पर, उन्होंने अपना शरीर सभी सात चक्रों से छोड़ा। तो आप यह आपबीती सुन रहे हैं।
ध्यानलिंग की प्रतिष्ठा?
तो ध्यानलिंग का अनोखापन यह है कि इसमें सभी सात चक्रों को उनके चरम पर प्रतिष्ठित किया गया है। यह उच्चतम अभिव्यक्ति है जो संभव हो सकती है। इसका मतलब है कि अगर आप ऊर्जा को लेकर उसे बहुत उच्च स्तर की तीव्रता तक ले जाते हैं, तो वह तीव्रता की सिर्फ एक खास सीमा तक ही आकार धारण कर सकती है। उसके बाद वह आकार धारण नहीं कर सकती, वह निराकार हो जाती है। अगर वह निराकार हो जाती है, तो लोग इसे अनुभव नहीं कर पाते हैं। ऊर्जा को उस उच्चतम सीमा तक ऊपर उठाकर, जिसके बाद वह आकार धारण नहीं कर सकती, और उस स्थिति में उसे धनीभूत (क्रिस्टलीकरण) करके, इसे स्थिर किया ले जाया गया है और प्रतिष्ठित किया गया है।
इस प्रतिष्ठा की प्रक्रिया में, जो बहुत तीव्र थी, साढ़े तीन साल लगे। प्रतिष्ठा के दौरान लोगों ने जिस तरह की स्थितियों को देखा, वे बिल्कुल अविश्वसनीय हैं। कई योगियों और सिद्धपुरुशों ने एक ध्यानलिंग को स्थापित करने की कोशिश की है, लेकिन कई कारणों से, वे इसके लिए जरूरी सारी सामग्रियाँ कभी एक साथ नहीं जुटा सके। आज के बिहार राज्य में पूर्ण रूप से प्रतिष्ठित तीन लिंग थे, लेकिन अब उनका भौतिक आकार नहीं बचा है। उनको पूरी तरह से ढहा कर मिट्टी में मिला दिया गया है और उन जगहों पर लोगों ने घर बना लिए हैं, लेकिन वह ऊर्जा-रूप वहाँ अभी भी मौजूद हैं। हम जानते हैं कि वे कहाँ पर हैं; मैंने उन्हें ढूँढ़ लिया है। दूसरे सभी लिंग कभी पूरे नहीं किए गए। मुझे दर्जनों ऐसे स्थान मिले हैं, जहाँ पर उन्होंने ध्यानलिंग को प्रतिष्ठित करने की कोशिश की, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्हें कभी पूरा नहीं किया गया।