भारतीय वायुसेना में काम करने वाले एक मुस्लिम युवक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालते हुए नौकरी के दौरान दाढ़ी रखने की परमिशन मांगी थी लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। इस बात पर काफी बवाल भी हुआ लेकिन इसने एयरफोर्स (IAF) के उन नियमों की तरफ लोगों का ध्यान आकार्षित किया जिसमें कहा गया है कि फोर्स को ‘गैर धार्मिक’ दिखाने के लिए यूनिफॉर्म पहनने के दौरान ना सिर्फ दाढ़ी रखने बल्कि तिलक, विभूति लगाने, हाथ पर किसी तरह का कोई धागा बांधने और कान में किसी तरह का कोई कुंडल पहनने के लिए भी मनाही है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय के दौरान भी इन सब नियमों का हवाला दिया था। ये नियम आर्मी और नेवी दोनों के लिए हैं। IAF के नियमों के हिसाब से यूनिफॉर्म में किसी तरह का धार्मिक पूर्वाग्रह नहीं दिखाई देना चाहिए। इस वजह से दाढ़ी सिर्फ मुस्लिम को ही नहीं बल्कि, हिंदू और सिख को भी नहीं रखने दी जाती।
IAF की पॉलिसी को फरवरी 2003 में फिर से रिवाइज करके नई पॉलिसी बनाई गई थी। पॉलिसी में साफ रूप से कहा गया है कि जिन्होंने 1 जनवरी 2002 से पहले ज्वाइन किया है और जिन्होंने ज्वाइनिंग के वक्त पर दाढ़ी रखी हुई थी उन्हें आगे भी रखने की इजाजत होगी। चाहे वह किसी भी धर्म के हों।इंडियन एक्सप्रेस के बात करते हुए आर्मी की लीगल ब्रांच के डिप्टी जज एडवोकेट कर्नल एसके अग्रवाल ने बताया कि रमजान में इजाजत लेकर मुस्लिम दाढ़ी बढ़ा सकते हैं। हालांकि, उन्हें ईद के बाद दाढ़ी काटनी होती है। अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो उसे अनुशासन का उल्लघंन माना जाएगा।
सिखों के लिए बने नियमों पर बात करते हुए अग्रवाल ने कहा कि उन्हीं सिखों को दाढ़ी रखने की इजाजत होती है जिन्होंने ज्वाइनिंग के वक्त दाढ़ी रखी हुई थी। उन्हें खेल और जहां पगड़ी पहनना मुमकिन नहीं है उनके अलावा हर जगह पगड़ी पहननी जरूरी होती है।