गुरु गोविंद सिंह के 350वें प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जुगलबंदी से नए सियासी कयासों का दौर आरंभ हो गया है। दोनों ने एक मंच से एक-दूसरे की तारीफ की। ऐसा उस समय हुआ, जब बिहार की महागठबंधन सरकार का सबसे बड़ा घटक दल राजद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुलकर खड़ा है।
ये वही मोदी-नीतीश हैं, जिनके रिश्तों में गत लोकसभा चुनाव के दौरान भारी काफी कटुता दिखी थी। मोदी की वजह से ही नीतीश ने एनडीए से बाहर जाने का फैसला लिया था। लेकिन, आज दोनों प्रकाश पर्व के आयोजन व शराबबंदी को लेकर एक-दूसरे की तारीफों के पुल बांधते दिखे।
तो क्या मोदी और नीतीश की यह करीबी लालू को नीतीश से दूर कर देगी? नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान रेलमंत्री की जिम्मेदारी भी नीतीश कुमार संभाल चुके हैं। ऐसे में अगर लालू प्रसाद यादव ने महागठबंधन से अलग होकर नीतीश की सरकार गिराने की कोशिश की तो क्या उन्हें भाजपा का साथ मिलेगा? ऐसे कई सवाल हैं, जो हवा में तैरने लगे हैं।
सियासी चर्चाओं के अनुसार बिहार विधानसभा की मौजूदा स्थिति के मुताबिक राजद 80 सीटों के साथ सूबे की सबसे बड़ी पार्टी है। स्थिति यह है कि अगर नीतीश-लालू अलग होते हैं, तो नीतीश कुमार की 71 और भाजपा की 53 सीटें मिलाकर बहुमत का आंकड़ा 122 पार हो जाएगा। दूसरी ओर लालू और कांग्रेस दूसरे दलों को मिलाकर भी बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे।
नीतीश और मोदी की करीबी नोटबंदी के मुद्दे पर भी दिखी थी। नीतीश ने नोटबंदी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया था। जबकि, नोटबंदी के मुद्दे पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद प्रधानमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठे हैं।
शराबबंदी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री द्वारा नीतीश की तारीफ पर लालू प्रसाद ने अपनी संतुलित प्रतिक्रिया दी है। उनके अनुसार ”जो सही है वो तो कहना ही पडे़गा।” लालू के साथ मजबूरी यह है कि अगर वे नीतीश के विरोध में जाते हैं तो उन्हें हासिल कुछ नहीं होगा। दूसरी तरफ अगर नीतीश की भाजपा से नजदीकी बढ़ी तो राजद एक बार फिर लंबे समय के लिए सत्ता से दूर हो जाएगा।