उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी में यादव पिता पुत्र में सुलह कराने की कोशिश में जुटे आजम खान का फार्मूला पास होते-होते आखिर वक़्त में फंस गया. फॉर्मूले की तमाम चीज़ों पर सहमति बन गई, लेकिन आखिर में आकर बात अटक गई.
ये था आज़म खान का फार्मूला:
1. मुलायम सिंह यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहें, अखिलेश यादव इस पद से अपना दावा वापस ले लें.
2. अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष की कमान वापस दे दी जाए और टिकट बंटवारे में उनकी अहम भूमिका रहे.
3. शिवपाल यादव को दिल्ली में राष्ट्रीय महासचिव बना दिया जाकर उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में भेज दिया जाए.
4. मुलायम धड़े के अमर सिंह और अखिलेश समर्थक रामगोपाल यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए.
कहां तक बनी सहमति:
गुरुवार सुबह मुलायम अचानक शिवपाल के साथ दिल्ली आए. थोड़ी देर बाद मुलायम के घर अमर सिंह भी पहुंच गए, जहां तीनों के बीच लंबी चर्चा हुई और कानूनी पहलू भी तलाशे गए. सूत्रों के मुताबिक, इसके साथ ही पार्टी के भीतर सब कुछ सही सलामत हो जाए, इसके लिए खुद अमर सिंह ने मुलायम सिंह यादव को बोला कि अगर उनको किनारे करने से पार्टी में सब ठीक ठाक हो जाता है तो वो खुद इसके लिए तैयार हैं, नेताजी फैसला कर लें. वहीं शिवपाल यादव ने राष्ट्रीय महासचिव बनकर प्रदेश की राजनीति से दूर रहने के प्रस्ताव पर एक कदम आगे बढ़ते हुए कह दिया कि अखिलेश अपने हिसाब से चुनाव लड़ लें, वह इस दौरान पार्टी में निष्क्रिय रहने को तैयार हैं. शिवपाल ने कहा कि जो नेताजी कहेंगे वो उसके लिए तैयार हैं.
तो आखिर कहां फंसा पेंच:
सूत्र बताते हैं कि इससे पहले लखनऊ में भी इन सब बातों पर चर्चा हो चुकी थी, लेकिन तब भी इस सबके बदले में अखिलेश अपने करीबी चाचा रामगोपाल के पर कतरने से पहले टिकट बंटवारे में पूरा कंट्रोल मांगने लगे. सूत्रों के मुताबिक, मुलायम धड़े के सारे लोग उसके लिए भी तैयार हो गए, लेकिन जब नेताजी को सम्मान के साथ अध्यक्ष पद लौटाने की बात आई, तब अखिलेश की तरफ से कहा गया कि नेताजी ने उन्हें सीएम बनाया था और वे अब चुनाव जीतकर ही राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी और मुख्यमंत्री का पद दोनों उन्हें वापस सौंप देंगे. सूत्रों के मुताबिक अखिलेश ने कहा, ‘नेताजी का पूरा सम्मान है और रहेगा और हर जगह पोस्टरों में उनका चेहरा होगा, लेकिन चुनाव मुझे अपने हिसाब से लड़ने दिया जाए.’ बस यही कहकर अखिलेश लौट आए.
दरअसल, अखिलेश के करीबियों का कहना है कि पिता मुलायम सिंह को अध्यक्ष पद देने में अखिलेश को कोई ऐतराज नहीं, लेकिन टिकट बांटने के बाद उनके इर्द-गिर्द मौजूद शक्तियों के दबाव में नेताजी ने अपनी कलम से नए क़दम उठा लिए, तब अखिलेश के पास सिर्फ हाथ मलने के कुछ नहीं बचेगा.
ऐसी हालत में अखिलेश मज़बूती से कानूनी तरीके से तैयारी कर रहे हैं. सपा का चुनाव चिह्न ‘साइकिल’ जब्त होने की सूरत में क्या करना है, उसकी तैयारी कर रहे हैं. इसके साथ ही अखिलेश महागठजोड़ की कोशिशों में भी जुटे हैं, तो वहीं मुलायम खेमा शक्ति प्रदर्शन में कमज़ोरी को समझते हुए कानूनी दांव पेच का सहारा ले रहा है. इस बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता अभी भी कोशिश में हैं कि शायद कोई करिश्मा हो जाए और पिता पुत्र एक हो जाएं.