प्राचीन काल से चली आ रही पिंडदान की परंपरा समय के साथ बदल रही है। मोक्ष नगरी गया में पितृपक्ष मेला शुरू हो गया है। वहां इस साल आठ लाख श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। लेकिन अगर आप किसी करण से यहां नहीं आ सकते तो पर्यटन विभाग आपके लिए ‘ई-पिंडदान’ का पैकेज लेकर आया है। हालांकि, पर्यटन विभाग के इस पैकेज का गया का पंडा समाज विरोध कर रहा है। तीर्थ पुरोहित इसे धर्म के साथ मजाक बता रहे हैं।
पर्यटन विभाग लाया ई-पिंडदान पैकेज
गया में पितृपक्ष मेला के आरंभ के साथ प्रभावी यह पैकेज 28 सितंबर तक जारी रहेगा। इस दौरान देश-विदेश के श्रद्धालु अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान पैकेज के माध्यम से घर बैठे संकर सकेंगे। इसके लिए 19 हजार रुपये के साथ-साथ 950 रुपये जीएसटी लगेगा। पर्यटन विभाग ने इस पैकेज के लिए बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट नंबर की घोषणा की है।
पंजीकरण के बाद तर्पण व पिंडदान
श्रद्धलुओं द्वारा पैकेज के तहत मागी गई राशि उपलब्ध कराने के बाद उनका पंजीकरण कर गया में उनके पितरों को विष्णुपद मंदिर व अक्षयवट में पिंडदान और फल्गु में तर्पण कराया जाएगा। इसके अतिरिक्त पूजन सामग्री, पंडित और पुरोहित पर होने वाले व्यय एवं कर्मकांड की वीडियो क्लीपिंग, फाटोग्राफ्स सभी श्रद्धालुओं को पिंडदान के बाद उपलब्ध कराए जाएंगे।
व्यवस्था में उतरा गया का पंडा समाज
उधर, पर्यटन विभाग के ई-पिंडदान पैकेज काे गया के पंडा सही नहीं ठहरा रहे हैं। प्रमुख पंडों में राजन सिजुआर कहते हैं, ”पिंड, पानी और मुखाग्नि पुत्र के हाथ से पिता को दिया जाता है। यह पुत्र का अपने पितृ के प्रति आस्था है, जो गयाधाम में आकर ही करने का फल है। सरकार की यह व्यवस्था धर्म संगत नहीं है तथा आस्था पर आघात है।” उधर, गया के एक और पंडा महेश लाल गुप्त का भी मानना है कि पिंडदान की परंपरा के साथ पुत्र सपरिवार गयाजी आकर अपने पितरों को श्रद्धा के साथ तर्पण और अर्पण करते हैं। ई-पिंडदान तो एक मजाक है, जो श्रद्धालुओं के साथ सरकार कर रही है।
समय के साथ बदली व्यवस्था
विदित हो कि धर्मग्रंथों में पुत्र के गयाजी आकर फल्गु में स्नान और विष्णुपद में पिंडदान को फलदायी कहा गया है। लेकिन समय के साथ पिंडदान की प्रक्रिया और गया की व्यवस्था में काफी बदलाव आया है। गया के बारे में प्रसिद्ध है कि यहां जो भी पिंडदान करने आते हैं, चे पूर्वजों के हस्तलिखित बही खाते पर दस्खत देखकर ही तीर्थ पुरोहित को अपना पंडाजी मानकर कर्मकांड संपन्न कराते हैं। यहां के तीर्थ पुरोहितों के पास साल-दो साल नहीं बल्कि दो सौ वर्ष तक के बही-खाते सुरक्षित हैं। समय के साथ इन्हें भी कंप्यूटराइज्ड करने की व्यवस्था की जा रही है।