शारदीय नवरात्र के सप्तमी के दिन बेलभरणी जुलूस को बिहार की पहली महिला बैंड ने बनाया स्पेशल. लखीसराय में दुर्गा पूजा का जुलूस इस बार बहुत खास रहा. इसे खास बनाने पहुंची थीं, बिहार की पहली महिला बैंड ‘सरगम’ की महिलाएं. ये महिलाएं प्रधानमंत्री के सामने भी अपनी कला दिखा चुकी हैं और इनपर ‘वुमनिया’ नाम की एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म भी बन चुकी है. शहर के छोटी दुर्गा स्थान से निकलने वाली शोभायात्रा में जब यह महिला बैंड सड़कों पर उतरी, तो लोग भौंचक रह गए.
आत्मविश्वास से भरे चेहरे, हाथों में स्टिक, गर्दन से लटके ड्रम, मां दुर्गा के भजनों के साथ जब इन महिलाओं ने बैंड बजाना शुरू किया तो लोग देखते रह गए.
पुरुष प्रधान इस पेशे में अपनी धमक जमाकर छा जाने वाली राजधानी पटना के दानापुर के ढिबरा नामक गांव के इन महिलाओं की आज देश-विदेश में चर्चा हो रही है. इन महिलाओं ने बताया कि ढिबरा गांव में सुविधाओं का अभाव है और पूरा गांव खेती पर ही निर्भर है. महादलित समाज की महिलाएं यहां कभी पति की मार और गरीबी का दंश झेलने को मजबूर थीं, लेकिन आज आत्मनिर्भर हैं.
इन महिलाओं के पति खेती-मजदूरी करते हैं. ये बताती हैं कि जब शादी करके घर में आईं तो घर में पैसे की तंगी थी और किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो पाता था. बच्चों के जन्म के बाद जिम्मेदारी बढ़ गई तो इन्होंने भी खेत में काम करना शुरू किया. दूसरों के खेत में मजदूरी करतीं और महिला होने की वजह से पैसे कम मिलते थे. इन्होंने बैंड सीखना शुरू किया, तो लोग हंसते थे. महिलाओं ने इसकी परवाह नहीं की और आज अपनी पहचान स्थापित कर चुकी हैं.
नारी गूंज नाम की एनजीओ की संचालक सुधा वर्गीस ने बैंड तैयार करने में मुख्य भूमिका निभाई थी. वह 2016 में रविदास समुदाय की महिलाओं के साथ काम कर रही थीं उसी दौरान उन्हें यह आइडिया आया था. काउंसलिंग के बाद कुछ महिलाएं राजी हुई और फिर वे सुधा के साथ आ गईंय अब ये महिलाएं शादी एवं अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी शिरकत करती हैं.